प्रभात इंडिया न्यूज़/अजय गुप्ता भीतहां मधुबनी, राजकीय कृत हरदेव प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज मधुबनी के पूर्व प्राचार्य एवं प्रख्यात पर्यावरणविद् पं०भरत उपाध्याय के नेतृत्व में मां चम्पा देवी के ब्रह्मभोज में एक सौ एक आम के पौधे का श्रद्धा पूर्वक वितरण किया गया।
इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य ने कहा कि आजकल युवा वर्ग के मन में एक प्रश्न उठ रहा है कि यह श्राद्ध कर्म क्यों करना चाहिए। उनको बताते चलें कि श्रद्धा से पितरों के लिए किया गया कार्य श्राद्ध कहलाता है। ऐसे लोगों को आज से सीख लेनी चाहिए।मॉडर्न पद्धति से पढ़ कर ज्ञानी बने हुए कुछ लोग कहते फिरते हैं कि यह श्राद्ध कर्म बाबा जी लोग अपने खाने-पीने के लिए बना रखे हैं। वर्तमान में ऐसी हवा चल पड़ी है कि जिस बात को वह समझ जाए वह तो उनके लिए सत्य है, परन्तु जो विषय उनके समझ से परे होता है उसे वह पाखंड एवं गलत कह देते हैं। यह सब वही लोग बोलते हैं जो स्वार्थी होते हैं ,क्योंकि वह अपने मित्र मंडली के भोज का निमंत्रण स्वीकार कर लेंगे और अपने घर भोज का निमंत्रण दे देंगे। दिन रात अपने आनंद में व्यर्थ का ब्यय कर देंगे, परन्तु श्राद्ध कर्म के लिए उनके पास ना समय होता है ना धन होता है। उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए की माता-पिता का ऋण जीते जी तो क्या? मरणोपरांत भी हम नहीं चुका सकते इसलिए उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करके ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
भारतीय संस्कृति के मुताबिक, मनुष्य जन्म लेते ही देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से ऋणी हो जाता है। इन तीनों ऋणों से मुक्ति पाने के लिए यज्ञ से देव ऋण से मुक्ति मिलती है। ऋषि ऋण के लिए वेद, गीता, और पुराण इत्यादि सुनना एवं पढ़ना चाहिए। इसके अलावा गीता का पाठ कराना चाहिए, सत्संग में जाना चाहिए, और अच्छे आचरण का पालन करना चाहिए।
श्राद्ध से पितृऋण से मुक्ति मिलती है, श्राद्ध यानी श्रद्धा से किया गया कार्य!पितृ ऋण से मुक्ति के लिए पितृपक्ष में सभी उपाय किए जाने चाहिए। इसके अलावा घर के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में कुछ धन इकट्ठा करके मंदिर में दान करना भी पितरों को संतुष्ट करने का एक उपाय है।
इस अवसर पर पं०शिवदासनी त्रिपाठी,पं० राहुल मणि, धीरेन्द्र मणि त्रिपाठी, उमेश यादव, दिनेश कुमार गुप्ता, राजेश निषाद आदि सैकड़ों लोग उपस्थित थे।