बालकृष्ण जन्मोत्सव पर आध्यात्मिक रहस्य में ब्रह्माकुमारी अंजना दीदी जी ने कहा।

प्रभात इंडिया न्यूज डेस्क/ बिहार/बेतिया। सोनू भारद्वाज 

बेतिया (सोनू भारद्वाज) हर वर्ष भारत में जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हरेक माता अपने बच्चे को नयनों का तारा और दिल का दुलारा समझती है, परन्तु फिर भी वह श्रीकृष्ण को सुंदर, मनमोहन, चित्तचोर आदि नामों से पुकारती है। वास्तव में श्रीकृष्ण का सौंदर्य चित्त को चुरा ही लेता है। जन्माष्टमी के दिन जिस बच्चे को मोर मुकुट पहनाकर, मुरली हाथ में देते हैं, लोगों का मन उस समय उस बच्चे के नाम, रूप, देश व काल को भूल कर कुछ क्षणों के लिए श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित हो जाता है।

सुंदरता तो आज भी बहुत लोगों में पाई जाती है परंतु श्रीकृष्ण सर्वांग सुंदर थे, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण थे। ऐसे अनुपम सौंदर्य तथा गुणों के कारण ही श्रीकृष्ण की पत्थर की मूर्ति भी चित्तचोर बन जाती है। इस कलियुगी सृष्टि में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसकी वृत्ति, दृष्टि कलुषित न बनी हो, जिसके मन पर क्रोध का भूत सवार न हुआ हो अथवा जिसके चित्त पर मोह, अहंकार का धब्बा न लगा हो। परन्तु श्रीकृष्ण जी ही ऐसे थे जिनकी दृष्टि, वृत्ति कलुषित नहीं हुई, जिनके मन पर कभी क्रोध का प्रहार नहीं हुआ, कभी लोभ का दाग नहीं लगा। वे नष्टोमोहा, निरहंकारी तथा मर्यादा पुरूषोत्तम थे। उनको सम्पूर्ण निर्विकारी कहने से ही सिद्ध है कि उनमें किसी प्रकार का रिंचक मात्र भी विकार नहीं था। जिस तन की मूर्ति सजा कर मंदिर में रखी जाती है, उसका मन भी तो मंदिर के समान था। श्रीकृष्ण केवल तन से ही देवता नहीं थे, उनके मन में भी देवत्व था। जिस श्रीकृष्ण के चित्र को देखते ही नयन शीतल हो जाते हैं, जिसकी मूर्ति के चरणों पर जल डाल कर लोग चरणामृत पीते हैं और उससे ही अपने को धन्य मानते हैं, यदि वे वास्तविक साकार रूप में आ जाएँ तो कितना सुखमय, आनंदमय, सुहावना समय हो जाए।अंत में बाल कलाकारों के द्वारा रासलीलाएं संगीत पर डांडिया नृत्य की गई, श्री कृष्णा और सुदामा के मिलन का और वासुदेव के द्वारा श्री कृष्ण को सागर में ले जाते हुए बहुत ही चैतन्य स्वरूप दिखाया गया और अंत में सभा में उपस्थित भाई बहनों के द्वारा श्री कृष्णा और राधे की आरती की गई।

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