अपने जीवन रथ का सारथी श्रीकृष्ण को बनावो-पं०भरत उपाध्यायपूर्व प्रधानाचार्य प० भरत उपाध्याय

प्रभात इंडिया न्यूज भितहा/मधुबनी

 

गृहास्थाश्रम एक गाडी है,और पति पत्नी उसके पहिए हैं। इस गाड़ी पर श्रीकृष्ण को पधराओ,जीवन रथ के सारथी है श्रीकृष्ण,इस जीवन रथ के अश्व हैं, हमारी इन्द्रियाँ।

हम प्रभु से प्रार्थना करें “नाथ मैं आपकी शरण में आया हूँ,जिस प्रकार आपने अर्जुन के रथ का संचालन किया था , उसी प्रकार आप मेरे जीवनरथ के सारथी बनें और सन्मार्ग पर लें जायँ।

जिसके शरीर रथ का संचालन प्रभु के हाथों में नही हैं ।

उसका संचालन मन करता है और मन एक ऐसा सारथी है जो जीवनरथ को पतन के गर्त में गिरा देता है …

यदि हम सबकी गाडी परमात्मा के हाथ में नही है तो इन्द्रिय रुपी अश्व उसे पतन के गडढे में गिरा देंगे।

अर्जुन की जीत इसीलिए हुई कि उन्होंने परमात्मा को सारथी पद दिया था मन को नहीं।

जीवन के पीछे छः चोर – काम , क्रोध , लोभ , मोह , मद , मत्सर लगे हैं।

गृहस्थाश्रम एक किला है,पहले उसमें रहकर ही लड़ना उत्तम है, ये छः शत्रु तो वन मे भी साथ आकर सताते है।

अतः उन छः शत्रुरुपी विकारों को हराकर”काम , क्रोध , लोभ ,मोह , मद , मत्सर को जीतना है।

इन छः शत्रुओं का विजेता गृहस्थ होते हुए भी वनवासी जैसा ही होता है,गृहस्थाश्रमी रहकर इन छः विकारों को कुचलना सरल है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!