प्रभात इंडिया न्यूज़ भैरोगंज
भैरोगंज। भैरोगंज थाना को पिछले पखवाड़े स्वायत्त थाना का दर्जा दिया जा चुका है । जिसकी जानकारी स्थानीय गणमान्य नागरिकों और स्थानीय थाना के अधिकारियों के समक्ष बगहा एसडीपीओ कुमार देवेंद्र ने पिछले मार्च के महीने के शुरुआत में एक बैठक के दरम्यान दी थी । वैसे इसके पहले भी इसे भैरोगंज थाना के नाम से जाना जाता था । लेकिन वास्तविकता के हिसाब से भैरोगंज स्वायत्त थाना नहीं था । यहाँ दर्ज किए जाने वाले मामलों को बगहा थाना में अंकित करना पड़ता था । हालांकि अब स्वायत्तता मिलने के बाद इस तरह की कोई औपचारिकता पूरी नहीं करनी पड़ती है । अब आने वालों मामलों को यहीं से पूरी तरह निष्पादित की जा रही है । 112 वाहन के अलावा अन्य वाहनों में बढोत्तरी हुई है । लेकिन कई ऐसी मूलभूत संसाधने हैं ,जो अभी यहाँ उपलब्ध नहीं हैं । उपरोक्त बिंदु पर हम चर्चा करेंगे । पर पहले इस थाने की स्थापना संबंधित इतिहास पर प्रकाश डाल लेते हैं । दरअसल कभी चंपारण की इस धरती को मिनी चंबल के नाम से जाना जाने लगा था । 1990 और उसके पहले के दौर में यहाँ अपराध का ग्राफ काफी ऊपर था । डकैती, चोरी, अपहरण व हत्या जैसे संगीन अपराध उद्योग की तरह फलफूल रहे थे । केंद्र की कभी तत्कालीन इंदिरा सरकार के समय आपरेशन ‘ब्लैक पैंथर’ भी चलाये गए । घुड़सवार पुलिस के जवान खेत-खलिहानों का दौरा अपराध और अपराधियों के उन्मूलन के लिये करते थे ।
सही समय का ज्ञान तो नहीं है ,पर इसी दौर में कभी भैरोगंज में पहले पुलिस ओपी की स्थापना हुई । बाद में रेल की जमीन में इसे एक अस्वायत्त थाने का दर्जा मिल गया । एक समय ऐसा आया कि मिनी चंबल के नाम से कुख्यात इस क्षेत्र से अपराध और अपराधियों का सफाया हो गया । लेकिन पुलिस के सामने दूसरी बड़ी चुनौती बतौर नक्सली वारदातों की आने लगी । समय का सटीक जानकारी तो नहीं है , लेकिन तब तत्कालीन बगहा पुलिस अधीक्षक रत्न संजय थे । उनके कार्यकाल में नक्सलियों ने भैरोगंज रेलवे स्टेशन से पश्चिम सिकटी नदी रेल पुल के पास रेल ट्रैक को रात्रि में उड़ा दिया था । जिसमे एक पैसेन्जर ट्रेन पटरी से उतर गई थी । हालांकि उस दुर्घटना में किसी तरह के जानमाल की नुकसान की खबर नहीं थी । अलबत्ता पुलिस ने उक्त वारदात को लेकर काफी सक्रियता से अपनी भूमिका को अंजाम दिया था । तत्कालीन बगहा एसपी रत्न संजय ने घटना स्थल का दौरा और गहन निरीक्षण किया था । हालांकि उस तरह की दूसरी घटना पुनः सामने अभी तक नहीं आई । बहरहाल उपरोक्त तथ्य गुजरे जमाने की बात हो गई है ।
फिर भी पुलिस की जिम्मेवारियां अभी कम नहीं हैं । पुलिस की दैनिक गतिविधि की जरूरत आज भी उतना ही है ,जितना कल था । निर्भय समाज के लिये इनकी कार्यशैली की निरंतरता बेहद जरूरी है ।
लेकिन सवाल है कि पुलिस जब खुद संसाधनों के अभाव से जूझ रही हो तो वह आम लोगों को सुरक्षा कैसे प्रदान करेगी । अगर हम भैरोगंज थाना की बात करें तो यहाँ संसाधनों की अत्यधिक कमी है । अपनी स्थापना के बाद से ही भैरोगंज थाना संसाधनों के आभाव के कारण अखबारों में अक्सर सुर्खियां बटोरता रहता है । ईंट की दीवार पर फुस-टाट व एस्बेस्टस की छप्पर के नीचे संचालित इस थाना को अभी तक अपना भवन नसीब नहीं है । आज के दौर में भी रेलवे की भूमि में संचालित इस थाना के कर्मी अलग भाड़े के मकान अथवा इसी थाना कैम्पस में दैनिक समस्याओं से जूझते हुए, अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए विवश है । यहाँ एक अदद कंप्यूटर भी नहीं है । बेहद तंग जगह व असहज अवस्था-व्यवस्था में पुलिस कर्मी अपना कर्त्तव्य निर्वहन कर रहें ।