प्रभात इंडिया न्यूज़/भीतहां अजय गुप्ता
रिश्तों के नाज़ुक धागे में, नाना- नानी,का एक प्रमुख प्यारा रिश्ता अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नाना नानी नहीं होते तो मां का अस्तित्व जीवन चक्र में स्थापित नहीं होता।गुजरे जमाने में नाना नानी का रिश्ता बड़ा न्यारा था। बहुत लोगों का बचपन से युवा अवस्था ननिहाल में बीतता था। नाना-नानी, मामा-मामी का प्यार रोम-रोम में रच-बस जाता था। लोग जीवन भर उनकी खुशियों का खयाल रखते थे। नाना-नानी के मृत्यु के उपरांत लोग श्रद्धा पूर्वक पिंडदान भी करते थे। आज भी श्रेष्ठ लोग उपरोक्त पिंडदान करते हैं।समय के कुचक्र में पड़कर यह प्यारा रिश्ता, सामाजिक धरातल पर शून्य हो चुका है। जीवन में गिरावट इस स्तर पर पहुंच गया है कि वृद्ध हो चले दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी का प्यारा रिश्ता जो जीवन चक्र का रीढ़ है ! इन दिनों उपेक्षा का शिकार हो गया है। आश्चर्य की बात यह है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि में ये सभी रिश्ते स्तंभ है, और इन रिश्तों से हम सभी अटूट रुप से बंधे हैं। सच्चाई यह है कि मां हमें पहली बार पेट में लेकर, फिर ऊंगली पकड़ कर ननिहाल घूमाती है। आज जब कुछ हम समझने लायक होते हैं, तो पढ़ाई -लिखाई के बहाने ननिहाल का दरवाजा बंद कर दिया जाता है। भले ही नाना-नानी इन नौनिहालों के दीदार के लिए तड़पते रहें।
ऐसे प्यारे रिश्तों को आज का प्रगतिशील सड़ियल समाज दरकिनार कर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहा है। एक जमाना था जब अंतिम समय में जाने वाले से, आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग लालायित रहते थे। आज के लोग अतिव्यस्त होने का बहाना बना कर किनारा कर लेते हैं। दुर्भाग्य यह है कि उपरोक्त प्यारा रिश्ता, जो पतन के कगार पर है!हर घर में है।।