प्रभात इंडिया न्यूज़ भीतहां अजय गुप्ता
आज मैं चौसठ साल का हो चुका, इससेअब कम साल मुझे जीना है।समझ आने के बाद मुझमें यह परिवर्तन आया है , आज कल प्रकृति और देवी-देवताओं की गोद में रहने लगा हूं।मेरा मानना है कि अंत में उन्ही की गोद में समा जाना है। आंतरिक आनंद के लिए मानव सेवा, जीवों पर दया और प्रकृति की सेवा में डूब गया हूं। अनंत का मार्ग इन्हीं से मिलता है। मेरा शरीर माता-पिता का दिया हुआ है, आत्मा परम कृपालु प्रकृति का दान है। अपना कुछ भी नहीं है, तो लाभ हानि की गणना क्या करना ।मैं इस दुनिया का यात्री हूं अपने साथ केवल प्रेम आदर और मानवता ही ले जा सकूंगा, जो मैंने बांटी है। अपनी सभी प्रकार की कठिनाइयां दुःख लोगों से कहना छोड़ दिया है क्योंकि मुझे समझ आ गया है की जो समझता है उसे कहना नहीं पड़ता और जिसे कहना पड़ता है वह समझता ही नहीं, अब अपने आनंद में ही मस्त रहता हूं,क्योंकि किसी भी सुख या दुःख के लिए केवल मैं ही जिम्मेदार हूं!!