प्रभात इंडिया न्यूज़/भीतहां अजय गुप्ता
पूर्व प्राचार्य पंडित भरत उपाध्याय ने अपने निवास पर आज तुलसी पूजन करने के बाद कहा कि अपनी संस्कृति के गौरव को आने वाली पीढ़ी को बताएं ,कि तुलसी की पूजा करने से लोग भगवान के परमधाम को प्राप्त करते हैं।तुलसी एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है
तुलसी का पौधा 1 से 3 फुट ऊँचा होता है।इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं।पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं।
पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं।बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं।नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं।
पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है।वृद्धावस्था में इसके पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं।
भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है।ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।
तुलसी की कई प्रजातियां हैं जिसमें से ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है।
ऑसीसम सैक्टम की भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं।
गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं।तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। तुलसी माला 108 गुरियों की होती है तुलसी माला धारण करने से ह्रदय को शांति मिलती है।तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है