प्रभात इंडिया न्यूज़/अजय गुप्ता भीतहां 

भारतीय संस्कृति मूलतः जीवनदायनी संस्कृति है ‘मृत्योर्मा अमृतं गमय’ यानी मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो कहकर इसमें सभी के अमरत्व की कामना की गई है। इसके अनुसार कभी किसी की मृत्यु नहीं होती ,केवल रूप बदलता है। मनुष्य के लिए यही गीता का सार है और कर्तव्य पथ पर आरुढ होने का मंत्र भी! यहीं हमारे पूर्वज भी स्थूल शरीर छोड़कर सूक्ष्म शरीर से सदा जीवित रहते हैं अतः उनके लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म का विधान किया गया है ।मृत व्यक्ति भोग कैसे कर सकता है। यह कह कर इसे ढोंग -पाखंड मानने वाली युवा पीढ़ी को इसका मर्म समझने की आवश्यकता है।

पिता एव पुत्रो जायते

पिता ही पुत्र के रूप में जन्म लेता है । उसी का नाम डीएनए है डी का मतलब है दादा, एन का मतलब है नाना ,और ए का मतलब है आत्मा ,

हमारे शरीर में दो चैनल है एक मैटरनल चैनल दूसरा पैटरनल चैनल एक पिता का रक्त संबंध और एक माता का दुग्ध संबंध रक्त संबंध लाल रंग खून का जिसे हम RBC कहते हैं और दुग्ध संबंध को WBC जिसे हम श्वेत रुधिर कणिका कहते हैं यह हमारे शरीर के अंदर है जब तक हम जीवित रहेंगे तब तक अपने पितरों का श्राद्ध करते रहेंगे इसलिए हमारा सनातन धर्म कहता है कि *पिता ददाती पुत्राणि*

पिता पुत्र देता है और दादा पौत्र देता है और परदादा सुख संपत्ति देते हैं ।

वंशोविस्तारताम यातू कीर्ति यातु दिगंतरम।

आयुर्विपुलतां याति पितृ देवो प्रसादतः।।

पितर वंश का विस्तार करते और सारे संसार में कृति का फैलना और लंबी उम्र देना ये सब पितरों की कृपा से तो संभव हो पाता

यह जो 6 महीने है वर्ष के इसमें अश्विन का महीना जो आता है उसमें सूर्य दक्षिणायन होते हैं उसका कृष्ण पक्ष पितरों का दिन होता है और पितृ वायु रूप में अपनें घर में वापस आते हैं की जो कुछ वह छोड़कर गए हैं वह सब कुछ ठीक तो है अर्थात मैंने जो संपत्ति छोड़ी है उसमें मेरे बच्चे मिल बाटकर खा रहे हैं अथवा नहीं और मेरे लिए कुछ दे रहे हैं अथवा नहीं मुझे स्मरण कर रहे हैं अथवा नहीं इसलिए वायु रूप में आते हैं परंतु जो श्रद्धावान पुत्र होता है वह क्या करता है कि वह पंडित जी को बुलाता है और उनको बुलाकर के तर्पण करवाता है ।

तो तर्पण कितने प्रकार के होते हैं तर्पण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं मुख्यतः

1.देव तर्पण 2. ऋषि तर्पण 3.मनुष्य तर्पण 4.पितृ तर्पण और 5.स्व पितृ तर्पण 6. यम तर्पण 7.भीष्म तर्पण इत्यादि और पितरो में भी इस जन्म के बंधु ही नहीं ये बान्धवा, ये अबान्धवा , येअन्य जन्मनी बंधवा, श्राद्ध पक्ष ऐसा पक्ष है कि इसमें आप किसी के लिए भी तर्पण कर सकते हैं इस जन्म के बंधु या किसी अन्य जन्म के बन्धू ये सब लोग पितृ रूप मेरे इस तिल और तर्पण से तृप्ति को प्राप्त हो दूसरा इसका बड़ा सुंदर मंत्र है जो सार्वभौमिक मंत्र है

नरकेषु समस्तेषु यातनासु च ये स्थिता:। तेषामाप्यायनायैतद्वीयते सलिलं मया।। येऽबाधवा बान्धवाश्च येऽयजन्मनि बान्धवा:। ते तृप्तिमखिला यान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाच्छति।।

अर्थात नर्क में फंसे हुए मेरे जो पूर्वज हैं जो किसी कारणवश नरक से निकल नहीं पा रहे हैं तो हम यमराज से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें छोड़ दें इसलिए तर्पण के समय यम तर्पण भी होता है कहा गया है *यमायधर्मराजाय मृतयवे चान्तकाय च।*

वैवस्वताय, कालाय, सर्वभूत क्षयाय च।।

औदुम्बराय, दघ्नाय नीलाय परमेषिठने।

वृकोदराय, चित्रायत्र चित्रगुप्ताय त नम:।।

एकैकस्य-त्रीसित्रजन दधज्जला´जलीन।

यावज्जन्मकृतम पापम, तत्क्षणा देव नश्यति।।

चित्रगुप्त को भी प्रणाम करता हूं कि वह मेरे पितरों की लाइफ डायरी में से उनके पाप निकाल कर के उनको मुक्त कर दें यह पितृ तर्पण है अपने पितरों को दूसरे के पितरों को सर्व पितरों को मुक्ति देने का जो काम है वह ब्राह्मण करता है ।।

By प्रभात इंडिया न्यूज़

My name is Shashi Kumar, I am a news reporter and the owner of this website.

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