सन्ध्यामुपासते ये तु सततं शंसितव्रताः।
विधूतपापासते यान्ति ब्रह्मलोकं सनातनम्॥
प्रभात इंडिया न्यूज़/अजय गुप्ता भीतहां-जो शंसितव्रती सतत् संध्योपासन करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं जिससे अन्तकाल में वे पुण्यात्मा सनातन ब्रह्मलोकको प्राप्त करते हैं।
कलियुग में भक्ति, नाम जप को तारक कहा गया है, किन्तु; सन्ध्यावन्दन के बिना ब्राह्मणों की गति नहीं।प्रत्येक द्विज सन्ध्यावन्दन अवश्य करें। इसका कोई विकल्प नहीं है। सन्ध्या के अभाव में ब्राह्मण पतित हो जाता है। किसी देवता की उपासना भक्ति करे न करे सन्ध्यावन्दन अवश्य करे, इससे उसका जीवन सफल हो जाता है। सभी देवी देवताओं की उपासना करने पर भी सन्ध्यावन्दन नहीं करता तो ब्राह्मणत्व से च्युत हो वह ‘व्रात्य’ ही होता है ।
जहाॕ पर केवल नाम जप से कृत्यकृत्यता अथवा इस प्रकार का औपासनिक फलादि दृष्ट हो वह उपर कहे गये सन्ध्या अयोग्यों हेतु जानना चाहिए। ब्राह्मणों के लिए सन्ध्या के साथ ही नाम जपादि कृत्य सफल हैं। सन्ध्याहीन ब्राह्मण क्षमताहीन विषहीन सर्प की भाॕति है, जो; केवल फुफकार सकता है, कुछ करने योग्य नहीं होता।
ब्राह्मणों को अकारण ही वेदाध्ययन एवं नित्य सन्ध्यावन्दन करना चाहिये। इसी में उनकी कृतकृत्यता है। नाम जप अन्यदेवपूजन, वेदाध्ययन आदि भी सन्ध्या के पश्चात ही करना चाहिये। सन्ध्याकाल में केवल सन्ध्या ही करनी चाहिये।
विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या वेदाः शाखा धर्मकर्माणि पत्रम्।
तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम्॥
ब्राह्मणरूप जो यह वृक्ष है इसका मूल सन्ध्या एवं वेद इसकी शाखा हैं। धर्म, कर्म आदि इस वृक्ष के पत्ते हैं। अतःजड़ की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये। मूलविहीन होने से न तो शाखायें ही बचेंगी र न पत्तियाॕ।
अत: मूर्खों की भांति जड़ों को नष्ट करते हुए पत्तियाॕ सींचने का कार्य न करें।
सन्ध्या येन न विज्ञाता सन्ध्या येनानुपासिता।
जीवन्नेव भवेच्छूद्रो मृतः श्वा चाभिजायते ॥ इति देवीभागवते।
जो विप्र सन्ध्या नहीं जानता और सन्ध्योपासन नहीं करता वह जीता हुआ ही शूद्र हो जाता है और मृत्यु के पश्चात कुत्ते की योनिको प्राप्त होता है।
सन्ध्याहीनोऽशुचिर्नित्यमनर्हः सर्वकर्मसु ।
यदन्यत् कुरुते कर्म न तस्य फलभाग्भवेत्॥ इति दक्षस्मृति।
संध्याहीन ब्राह्मण नित्य ही अपवित्र है और सम्पूर्ण धर्मकार्य करने में शूद्रवत् अयोग्य ही है। वह जो कुछ अन्य कर्म करता है उसका फल उसे नहीं मिलता।
अत: ब्राह्मणों को चाहिये कि सन्ध्यावन्दन को ही प्रमुखता दे क्योंकि इसी से वह कृतकृत्य हो जाता है। इसके अभाव में तो उसका पतन ही सुनिश्चित है, चाहे वह नाम जप करे अथवा अन्य कुछ।
इसी प्रकार ब्राह्मणों को वेद छोड़ अन्य शास्त्रों में परिश्रम नहीं करनी चाहिये। उनके लिए वेद वेदाङ्ग ही प्रमुख हैं। जो वेदभ्रष्ट हो चुके हैं, अनधिकारी हैं उनका अन्य शास्त्रों में परिश्रम समझ में आता है, ब्राह्मणों का नहीं। गंगा पास में बह रही हो, आप गंगा पास जाने के अधिकारी भी हैं फिर कौन जड़मति पानी के लिए कुआॕ खोदता फिरेगा ?