रंजन कुमार//रामनगर शायरी माता, कोट बंजरिया, ऐतिहासिक प्राचीन बैराटी माता मन्दिर जहां आल्हा ऊदल, महाभारत काल में पांडव भी बैराटी माता के मन्दिर में पूजा अर्चना किए थे । महाभारत काल के अवशेष आज भी मौजूद हैं जो आकर्षण का केन्द्र है। भारवालिया माता का मन्दिर, सुभद्रा मंदिर, मदनपुर माता मन्दिर भी आकर्षण का केन्द्र है। ऐसी मान्यता है कि थावें का राजा मनन सिंह के जिद पर रहसू भगत माता का आह्वान कर बुलाए उसी क्रम में माता कलकत्ता से चलकर मदनपुर में विश्राम की जो घने जंगल में है सबकी मुरादें पूरी करने वाली माता के दरबार में चैत्र नवरात्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता का दर्शन करने पहुंचते हैं। नवरात्र में महिलाएं नहा धोकर देवी स्थानों में जाकर हलवा पूड़ी बनाकर माता को भोग लगाती है। वाल्मीकिनगर स्थित माता नरदेवी मन्दिर भी नवरात्र में बिहार, उत्तरप्रदेश और नेपाल से आए श्रद्धालुओं से भरा रहता है । महर्षि वाल्मीकि भी माता नरदेवी का पूजा अर्चना किए है जिसका प्रमाण रामायण में मिलता है ।यहां हलवा पूड़ी और नारियल चढ़ा कर माता की पूजा अर्चना की जाती है । वाल्मीकिनगर स्थित वाल्मीकि आश्रम में रामायण काल के बहुत अवशेष आज भी मौजूद हैं जैसे महर्षि वाल्मीकि का तपस्या स्थल, लव कुश का भगवान श्रीराम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ में छोड़ा गया घोड़ा बांधने वाला पत्थर का स्तम्भ, लव कुश का युद्ध स्थल, माता सीता की रसोई, माता सीता का धरती में प्रवेश स्थल आदि इस बात की पुष्टि करते हैं की ये वही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है जहां वनवास में माता सीता रहीं है । इस मनोहारी दृश्य का अवलोकन करने लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं । वहीं बिहार में दूसरी वैष्णव देवी के नाम से विख्यात सोमेश्वर पर्वत शिखर पर विराजमान मां कालिका मन्दिर श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। रामनगर से 15 किलोमीटर के दूरी पर गोबर्धना वन क्षेत्र है । यहीं से शुरू होता है सोमेश्वर धाम माता कालिका का पैदल यात्रा । नदियों, पथरीले रास्तों, जंगलों और दुर्गम पहाड़ी से होकर मां कालिका के मन्दिर तक जाने के बीच सकरी गली जो दो पहाड़ों के बीच से जाने का रास्ता है जो काफी संकीर्ण है इसे सकरी गली के नाम से जाना जाता है, परेवा दह, टाईटेनिक, पहाड़, नाचन चिड़ियां,भरथरी कुटी, ब्रिटिश डाक बंगला, रहसू भगत का पत्थर का नाव, सिंहगुफा, पाताल गंगा, सोमेश्वर नाथ का पेड़ फाड़कर निकला शिवलिंग,और पर्वत के चोटी पर विराजमान मां कालिका का मंदिर । सोमेश्वर धाम तक खाली शरीर पहुंचने में कठिनाई है और ऐसे में श्रद्धालुओं को मुफ्त भोजन, रास्ते में दुर्गम पहाड़ पर गुड़ चना और शीतल जल पिलाने के लिए स्थानीय मनचंगवा और गोबर्धना के थारू समुदाय के लोगों का बहुत बड़ा योगदान है । वैष्णव माता मन्दिर से भी कठिन और पहाड़ की खड़ी चढ़ाई होकर मां कालिका का दर्शन करने पहुंचा जाता है ।प्रति वर्ष लाखों महिला पुरुष और बच्चे, बिहार, उत्तरप्रदेश, नेपाल, भूटान, सिक्किम, मेघालय से श्रद्धालुओं की भीड़ आती है । सबकी मुरादें पूरी करने वाली मां कालिका के दरबार से कोई भक्त निराश नहीं होता है ।