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*कितना सुंदर है! सुन्दरकाण्ड-पं०भरत उपाध्याय* *

*सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।* कौतुक कुदि चढ़ेउ ता ऊपर।। (५/०/३)

सुन्दरकाण्ड के उपरोक्त चौपाई में जो सर्वप्रथम *’सुंदर’* शब्द प्रयुक्त हुआ है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। अब समझना यह है कि जिस पर्वत से श्री हनुमान जी ने समुद्रोल्लंघन किया वह पर्वत सुन्दर है, तो क्यों?

बहुत से विद्वानों के अनुसार यह पर्वत जिससे श्री हनुमान जी ने छलांग लगायी थी, का नाम *’सुंदर’* था। जिस कारण मानस के पंचम सोपान का नाम *सुन्दरकाण्ड* हुआ।

लेकिन *वाल्मीकि रामायण* के किष्किंधाकाण्ड में इस पर्वत का नाम *’महेन्द्राचल’* लिखा है और अध्यात्म रामायण/४/९/२८ में भी *’महेन्द्राद्रिशिरो गत्वा बभूवाद्भुतदर्शनः।।’* से पर्वत का नाम *’महेन्द्राचल’* ही सही है।

वाल्मीकि जी के अनुसार यह महेन्द्राचल अत्यन्त सुन्दर है –

*वृतं नानाविधैः पुष्पैर्मृगसेवितशाद्वलम्।*

*लताकुसुमसम्बाधं नित्यपुष्पफलद्रुमम्॥*

*सिंहशार्दूलसहितं मत्तमातङ्गसेवितम्।*

*मत्तद्विजगणोद‍्घुष्टं सलिलोत्पीडसंकुलम्॥* (४/६७/४०-४१)

सम्भवतः उपरोक्त श्लोकों में वर्णित प्राकृतिक सुन्दरता को देखते हुए गोस्वामी जी ने यह लिखा कि *’सिंधु तीर एक भूधर सुंदर’*।

*कल्याण/जनवरी १९५०/पेज संख्या २७८* के अनुसार यह पर्वत भगवान परशुराम जी की तपःस्थली थी। इसलिए जिस पर्वत पर भगवान परशुराम जी का निवास हो, वह सुन्दर तो होगा ही। सो *’सिंधु तीर एक भूधर सुंदर’*।

श्री हनुमान जी रुद्रावतारी हैं। रामकार्य के लिए जिसका भी सहयोग या आश्रय श्री हनुमान जी को मिला वह तो सर्वथा सुन्दर ही कहलायेगा। सो *’सिंधु तीर एक भूधर सुंदर’*।

इन सब के अलावा आज इस पर्वत को एक सौभाग्य और मिला जो मानस के किसी अन्य पर्वत को नहीं मिल सका। आज महेन्द्रगिरि के ऊपर श्री हनुमान जी के चरण हैं और पर्वत को डगमगाते देखकर पर्वत के नीचे श्री राम जी के अपने कोमल हाथों से उसे बार बार संभाल रहे हैं, *”बार बार रघुबीर सँभारी।”* आज तो यह पर्वत राघव सरकार के कोमल करों व रुद्रावतारी श्री हनुमान जी के चरणों के मध्य बने संपुट की शोभा बन गया। इसलिए, यह अंतरंग सौन्दर्य स्तुत्य है। *आज एक साथ इस महेन्द्रगिरि को शिव जी (हनुमान जी) और राम जी की कृपा प्राप्त हो गयी है।* श्री हनुमान जी ने भी देखा कि अब तो श्री राम जी ही हमें उछालकर लंका भेजने वाले हैं तो *’तरकेउ पवनतनय बल भारी।’* श्री हनुमान जी ने छलाँग लगायी। मानो आज पर्वतरूपी धनुष से स्वयं श्री राम जी ने श्री हनुमान जी को ही अमोघ वाण बनाकर लंका की ओर छोड़ दिया हो। गोस्वामी जी ने संकेत भी किया है-

*जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।* (५/०/४)

इसलिए, *इस पर्वतराज को आज जो सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह किसी अन्य पर्वत को नहीं मिल सका।* एक साथ *’हरि-हर’* की कृपा मिली तो गोस्वामी जी को कहना पड़ा कि- *’सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।’*

जब हनुमान जी ने प्रसन्नतापूर्वक लंका यात्रा का शुभारम्भ किया तो किसी असुन्दर स्थान से यह यात्रा कैसे प्रारम्भ होती? कार्य श्रीरामजी का, यात्रा श्री हनुमान जी की, उद्देश्य भक्ति स्वरूपा श्री सीता जी की खोज, मोह नगरी लंका व रावण का विनाश तथा पृथ्वी पर धर्म की संस्थापना जब सब उपक्रम सुन्दर करने हेतु ही हैं तो पर्वत को सुन्दर कहा ही जाना है। इसलिए यात्रा के प्रारंभ स्थल को गोस्वामी जी ने कहा कि- *’सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।’* जब सब कुछ सुन्दर है तो *सोपान का नाम ‘सुन्दरकाण्ड’ के अतिरिक्त कुछ और कैसे होता?*

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