बसन्त पंचमी -वीणावादनी जन्मोत्सव -पं०भरत उपाध्याय
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खास तौर पर मनुष्य योनि की रचना की ।अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे ।उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण विखरते ही उसमें कंपन होने लगा ।इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ ।यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था । जिसके एक हाथ में बीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था ।अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त जीव- जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया ।पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा! सरस्वती को बागीश्वरी ,भगवती, शारदा ,वीणा वादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसंत पंचमी के दिन को इनकी जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्राणोदेवीसरस्वतीवाजेभिर्वजिनीवती धीनामणि त्रयवतु। सरस्वती के रूप में यह हमारी बुद्धि प्रज्ञा तथा मनोवृतियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेंधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं।
अर्थात यह परम चेतना है।