मधुबनी, अजय सिंह चंदेल

 

मधुबनी व भितहा में फर्जी नर्सिंग होमों का संचालन विभागीय अधिकारियों के संरक्षण में धड़ल्ले से संचालित हो रहा है।

इस अवैध कारोबार को न कोई रोकने वाला है और न ही कोई टोकने वाला। लिहाजा लापरवाही की वजह से ऐसे नर्सिंग होम में आये दिन जच्चा बच्चा की मौत होती रहती है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों की मानें तो आशा कार्यकर्ता की सांठगांठ व कमीशन के बलबूते यह अवैध नर्सिंग होम संचालन का धंधा फल फूल रहा है और फर्जी नर्सिंग होम संचालकों के हौसले बुलंद हैं। बताया जाता है कि सदर अस्पताल के आसपास व मुख्यालय में संचालित ऐसे नर्सिंग होम की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के आला अफसरों को भी है। इस संबंध में सिर्फ कागजी घोड़े ही दौड़ाए जाते हैं।इन संचालकों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग द्वारा ठोस कार्रवाई नहीं होने से विभागीय अधिकारियों पर साठगांठ के आरोप भी लगाये जाने लगे हैं। यही नही यहां मरीजों से इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूलने के बाद भी उन्हें समुचित उपचार मुहैया नहीं कराया जाता है। जानकारों की मानें तो मधुबनी प्रखंड हो या दहवा, भितहा प्रखंड -गांव हर तरफ कारोबार चरम पर है। सबसे ज्यादा दहवा में यह नर्सिंग का कारोबार चल रहा है। इन दो प्रखंड के दर्जनों चौक है जहां निजी मकान में मानक को दरकिनार कर नर्सिंग का कारोबार चल रहा है।मरीज व परिजनों के साथ की जाती है मनमानी

नर्सिंग होम के संचालक मरीजों और उनके परिजनों के साथ मनमानी करते हैं। प्रखंड भर में ऐसे कई मामले सामने चुके हैं लेकिन अभी तक कार्रवाई किसी संचालक पर नहीं हुई। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि जो क्लीनिक और नर्सिंग होम नियमों और शर्तों की पूर्ति नहीं करते हैं,निरीक्षण करने के दौरान संबंधित टीम सख्त रुख अख्तियार तो करती है लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए। बाद में पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।कमीशन के चक्कर में आशाकर्मी पहुंचाती है नर्सिंग होम : कमीशन के चक्कर में आशा कार्यकर्ता पीड़ित को मौत के मुंह में झोंकने में जरा भी संकोच नहीं करती है। आशा का यह कारनामा किसी से छिपा नहीं है। इस तरह के दर्जनों मामले सामने आ चुकी है। हालांकि इन नर्सिंग होम में किसी की मौत होने पर संचालक सहित उनके सहयोगी सक्रिय हो जाते हैं और कुछ ले देकर मामले को रफा दफा करने के लिए दबाव बनाते है।पीड़ित व्यक्ति के रिश्तेदारों पर राजनीतिक प्रभाव का भी इस्तेमाल करते है और केस मुकदमा नहीं हो इसके प्रयास में जुट जाते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ऐसे फर्जी संचालकों पर कब तक कार्रवार्इ करती है यह देखना बांकी होगा।

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